मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने ‘एक देश-एक चुनाव’ को लोकतंत्र को सशक्त बनाने की दिशा में एक ऐतिहासिक और दूरदर्शी कदम बताया। उन्होंने यह विचार संयुक्त संसदीय समिति के संवाद कार्यक्रम में व्यक्त किया, जिसमें समिति के अध्यक्ष श्री पी.पी. चौधरी सहित अन्य सदस्य भी उपस्थित थे।
मुख्यमंत्री धामी जी ने कहा कि भारत जैसे विविधताओं से भरे लोकतांत्रिक देश में बार-बार चुनाव कराना एक जटिल प्रक्रिया है, जिससे न केवल प्रशासनिक व्यवस्था प्रभावित होती है, बल्कि विकास कार्यों पर भी असर पड़ता है। जब देश के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग समय पर चुनाव होते हैं, तो हर बार आदर्श आचार संहिता लागू हो जाती है। इसका सीधा प्रभाव यह होता है कि विकास संबंधी योजनाएं रुक जाती हैं, सरकारी योजनाओं की घोषणा नहीं हो पाती, और प्रशासन पूरी तरह चुनावी मोड में चला जाता है। इससे राज्यों की गति धीमी हो जाती है और आम जनता को भी इसका नुकसान उठाना पड़ता है।
धामी जी ने यह भी स्पष्ट किया कि जब विधानसभा और लोकसभा चुनाव अलग-अलग होते हैं, तो राज्यों और केंद्र सरकारों पर अलग-अलग खर्च का भार आता है। उदाहरण के लिए, विधानसभा चुनाव का सारा खर्च राज्य सरकार वहन करती है, जबकि लोकसभा चुनाव का खर्च केंद्र सरकार उठाती है। यदि दोनों चुनाव एक साथ कराए जाएं, तो यह भार बराबर बंट सकता है और कुल खर्च में 30 से 35 प्रतिशत तक की बचत हो सकती है। यह बहुत बड़ी राशि होती है, जिसे राज्य के विकास कार्यों में लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि इस बचत का उपयोग राज्य की प्राथमिकताओं — जैसे स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार, शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार, सड़क और जल की सुविधाएं, किसानों के लिए कृषि सहायता, और महिलाओं के सशक्तिकरण — जैसे अनेक कल्याणकारी क्षेत्रों में किया जा सकता है। इस प्रकार ‘एक देश-एक चुनाव’ केवल प्रशासनिक सुधार नहीं है, बल्कि यह एक समग्र सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन की दिशा में कदम है।
मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि भारत की चुनाव प्रणाली वैसे तो अब तक बहुत सफल और मजबूत रही है, लेकिन समय की मांग है कि इसे और अधिक कुशल और व्यावहारिक बनाया जाए। उन्होंने यह उम्मीद जताई कि ‘एक देश-एक चुनाव’ की नीति यदि लागू होती है, तो इससे देश के संसाधनों की बचत होगी, कार्य निष्पादन में तेजी आएगी, और लोकतांत्रिक प्रक्रिया अधिक समावेशी और भागीदारीपूर्ण बन सकेगी।
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