साहिबजादे जोरावर सिंह जी और फतेह सिंह जी का बलिदान भारतीय इतिहास में अदम्य साहस और धर्मनिष्ठा का प्रतीक माना जाता है। सिख पंथ के दशम गुरु, श्री गुरु गोबिंद सिंह जी के इन वीर पुत्रों ने अत्याचार के सामने झुकने के बजाय अपने धर्म और विश्वास की रक्षा को चुना।
1705 ईस्वी में सरहिंद के नवाब वज़ीर खान ने दोनों साहिबजादों को बंदी बनाकर धर्म परिवर्तन के लिए विवश करने का प्रयास किया। मात्र 7 और 9 वर्ष की आयु में भी दोनों साहिबजादे अपने निर्णय पर अडिग रहे। अंततः उन्हें जिंदा दीवार में चुनवाने का क्रूर आदेश दिया गया।
इतिहासकार मानते हैं कि यह बलिदान आने वाली पीढ़ियों के लिए साहस, सत्य और आत्मसम्मान की अमर सीख है। आज भी साहिबजादों की शहादत देशभर में श्रद्धा और सम्मान के साथ स्मरण की जाती है।
