उत्तरकाशी (Uttarkashi News):
उत्तराखंड के प्रसिद्ध Dayara Bugyal में इस साल पारंपरिक Butter Festival 2025 का आयोजन धूमधाम से किया गया। हर साल भाद्रपद की संक्रांति पर मनाए जाने वाले इस मेले को इस वर्ष Dharali Disaster के कारण 20 दिन की देरी से मनाया गया।
इस पारंपरिक उत्सव में ग्रामीणों ने दूध, दही और मक्खन से Holy खेली। साथ ही, Radha-Krishna के रूप में सजे पात्रों ने दही की Handi फोड़कर शुभारंभ किया। इस दौरान ग्रामीणों ने अपने मवेशियों और पूरे क्षेत्र की खुशहाली की कामना की।
दूध-दही और मक्खन से वन देवियों को भोग
सावन के महीने में ग्रामीण अपने मवेशियों के साथ बुग्यालों में जाते हैं और वहां से दूध-दही और मक्खन इकट्ठा करते हैं। इन सामग्रियों को इस उत्सव के दौरान वन देवियों और अपने आराध्य देवताओं को भोग के रूप में अर्पित किया जाता है।
इसके बाद सभी ग्रामीण एक-दूसरे के साथ दूध-दही और मक्खन की होली खेलते हैं। यह परंपरा सालों से चली आ रही है और इसे ग्रामीणों के बीच भाईचारे और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है।
ढोल-दमाऊं की थाप पर रासो-तांदी नृत्य
मेले में ढोल-दमाऊं की थाप पर पारंपरिक Raso-Tandi Dance का आयोजन किया गया। ग्रामीणों और स्थानीय कलाकारों ने इस नृत्य के जरिए अपनी संस्कृति का प्रदर्शन किया। देर शाम Raithal Village में एक Cultural Evening भी आयोजित की गई, जिसमें लोकगीत और नृत्य प्रस्तुत किए गए।
धराली आपदा में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि
मेले से एक दिन पहले, शुक्रवार की शाम को धराली आपदा में जान गंवाने वाले लोगों की आत्मा की शांति के लिए Tribute Program आयोजित किया गया। इस अवसर पर ग्रामीणों ने मौन धारण कर उन्हें श्रद्धांजलि दी।
ग्रामीणों की भागीदारी
Dayara Tourism Committee के अध्यक्ष मनोज राणा और सदस्य पृथ्वीराज राणा ने बताया कि इस वर्ष आपदा के कारण केवल स्थानीय ग्रामीणों ने ही उत्सव में भाग लिया। फिर भी ग्रामीणों ने पूरे उत्साह के साथ त्योहार मनाया और परंपरा को जीवित रखा।
निष्कर्ष:
दयारा बुग्याल का Butter Festival उत्तराखंड की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का प्रतीक है। यह सिर्फ एक उत्सव नहीं, बल्कि प्रकृति, देवताओं और ग्रामीण जीवन का संगम है, जो लोगों को आपस में जोड़ता है और क्षेत्र की लोककला व परंपराओं को संरक्षित करता है।