3 साल बाद हो रहा हैं, बैकुंठ चतुर्दशी मेले का वैभव
बैकुंठ चतुर्दशी मेला गढ़वाल के पुराने मेलों में से एक है, जो पुराने समय से चलते आ रहा हैं। इसका ऐतिहासिक इतिहास होने के साथ सांस्कृतिक महत्व भी है। बैकुंठ चतुर्दशी मेला जो की उत्तराखंड के श्रीनगर पौड़ी में महादेव के आशीर्वाद साथ शुरू होता हैं। बैकुंठ चतुर्दशी मेले को देख ने रूद्रप्रयाग, चमोली, टिहरी, पौड़ी से भी बड़ी संख्या में लोग पहुॅचते हैं. इसके अलावा मेले में स्टार नाइट, गढ़वाली स्टार नाइट, कव्वाली नाइट, श्रीनगर के सितारे समेत अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रम मेले की शोभा बढ़ाते हैं.
ऐतिहासिक पृष्ठ भूमि
वैकुण्ठ चतुर्दशी मेले के महत्व के साथ-साथ कमलेश्वर मंदिर के महत्व का ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को भी समझना आवश्यक है। श्रीनगर जो प्राचीन काल में श्री क्षेत्र कहलाता था। त्रेता युग में रावण वधकर रामचन्द्र जी द्वारा यहाँ पर 108 कमल प्रतिदिन एक माह तक भगवान शिव का अर्पण किया जाने का वर्णन मिलता है। प्रतिवर्ष कार्तिक मास की त्रिपुरोत्सव पूर्णमासी को जब विष्णु भगवान ने सहस कमल पुष्पों से अर्चनाकर शिव को प्रसन्न कर सुदर्शन चक्र प्राप्त किया था, उस आधार पर वैकुण्ठ चतुर्दशी पर्व पर पुत्र प्राप्ति की कामना हेतु दम्पत्ति रात्रि को हाथ में दीपक धारण कर भगवान शंकर को फल प्राप्ति हेतु प्रसन्न करते हैं।